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Tuesday, March 22, 2011

प्रेम और सौहाद्र के त्योहार होली पर बढती दूरियाँ


आज से कुछ साल पहले और अभी की होली में जाने कैसे एक बड़ा अंतर आ गया है

पहले होली सौहाद्र और आपसी भाई चारे का त्योहार हुआ करता था लेकिन अब लगता है ये ही त्योहार एक दुसरे से ना केवल बदला निकालने का साधन बन गया है बल्कि कही कही एक दुसरे को अपने से छोटा साबित करना का अखाडा भी बन गया है.

मुझे अच्छी तरह से याद है आज से ८-९ पहले हमारे पूरे मोहल्ले में सिर्फ एक ही होली जला करती थी आज हालत ये हैं की  ४०० मकानों के इस मोहल्ल्ले में घर के बाहर खड़े हो कर ही ८-९ होलीयाँ गिनी जा सकती हैं. जब ये देखा तो दिल जाने किस खटास से भर गया और मुझे वो समय याद आने लगा जब मोहल्ले में होली जलाने का जिम्मा हमारी टोली उठाया करती थी और होली के २१ दिन पहले से ही तय्यारी शुरू कर दी जाती थी. पूरे मोहल्ले में सिर्फ एक ही टोली हुआ करती थी जिसके पास होली जलाने का अधिकार हुआ करता था और इस टोली में शामिल होने के लिए किसी को मनाही नहीं थी.

कभी किसी ने बागी हो कर एक नई टोली बनाने या दूसरी किसी जगह होली जलाने की कोशिश की तो उसका मुह होली के कई दिन पहले ही रंगों से लाल हो जाता था और उस टोली की होली रात होते ही मुख्य होली में शामिल हो जाती थी. मुख्य टोली की तरफ से फ़तवा जारी कर दिया जाता "कोई भी बागी टोली को चंदा नहीं देगा अन्यथा उसका हर्जाना चंदा देने वालो के खटिया और दरवाजो को होली में शामिल कर के किया जायेगा". इस पूरे संस्मरण में जो बात सबसे ज्यादा अच्छी हुआ करती थी वो थी व्यस्को की तरफ से एक ही होली जलाने को मिलने वाला सहयोग.

आज हालत ये हैं की कुछ जगहों पर तो मात्र २० कदमो के अंतर पर ही होली जल रही है और व्यस्को द्वारा बच्चो का साथ देते हुए बड़े ही गर्व के साथ कहा जाता है ये हमारी होली है और हम इस होली में ही पूजा करेंगे.

ये देखने के लिए क्या ऐसा माहौल सिर्फ एक मोहल्ले में ही है या हमारी होली वाली ये बीमारी हर और फैली है मै शहर में निकला और देखा तो देख कर दिल में सिर्फ खटास ही बढ़ी और कुछ नहीं. लगभग यही स्थिति हर मोहल्ले में हर गली और यहाँ तक की हर खास सड़क पर देखने को मिली. जहा भी रुक कर मैंने ३-४ होली दहन मात्र १०० फिट के दायरे में क्यों हो रहा है ये जानने की कोशिश की तो जवाब में मिलने वाले शब्द चाहे कुछ भी रहे हो उन शब्दों का मतलब मात्र यही था की हम भी श्रेष्ठ है और हम होली दहन क्यों ना करे

छोटे और किशोर उम्र के बच्चे जब इस तरह का माहौल देखते हैं तो उसका असर ये होता है की वो बढते हुए अपने बाल मन में अहंकार और भेदभाव वाली भावना को भी बढ़ाते जाते हैं जिसका असर एकता और सौहाद्र की कमी होती है

इस पूरे घटनाक्रम में नुकसान केवल एकता और सौहाद्र का ही नहीं है बल्कि पर्यावरण का भी है. लोग खुद को बड़ा साबित करने के लिए उस होलिका को बड़ा बनाते जाते हैं जिसका प्रतिनिधित्व वो लोग करते हैं और उसका नतीजा होता है सामान्य से कई गुना अधिक लकड़ी और कन्डो की खपत होती है जो की वातावरण को गरम करने का काम करती है.


ये तो हुई एकता की कमी की बात इसके साथ ही सौहाद्र और भाई चारा भी इस तरह से कम हो रहा है की पहले तो पूरा मोह्ल्ल्ला एक हो कर होली मनाता था और दुसरे मोहल्लो में गेर निकलते हुए जाता था लेकिन अब हर होली के आस पास रंग खेले जाते हैं और दूसरों की तरफ से आने वालो के लिए एक तिरस्कार पूर्वक व्यव्हार का प्रदर्शन किया जाता, रंगों की बजाय कीचड़ और नुकसान देह वस्तुओ का प्रयोग किया जाता है जो की भाई चारे और सौहाद्र की बलि ले लेते हैं

आइये हम सब मिल कर कोशिश करे इस दूरी में कमी लाने की और पर्यावरण को भी बचाने की


2 comments:

Ravi Rajbhar said...

Abhi goan me ye sthiti nahi hai .
par adhunikta ne yaha bhi paw pasar liya hai
kujhe bhi aaj ke 8-9 shal pahle ki holi aur aajki holi me bada hi antar dikhta hai.

is duri ko kaise kam kiya jaye jise hame ki banaya.
acggi prastuti ke liyebadhai.

anjule shyam said...

ये होलिका जलने की कदम कदम पे दिखने वाली नजदीकियां बताती हैं ...हम लोग आपस में कितने दूर होते जा रहे हैं....

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