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Thursday, March 17, 2011

हमें गरीब ना कहना हम मान हानि का मुकद्दमा कर देंगे

जी हाँ हो सकता है की जल्द ही ये बात सुनने को मिल जाये किसी ऐसे शख्स से जो की आपकी नजरो में गरीब हो


सरकार के योजना आयोग के मुताबिक गांव में 12 रु और शहर में 17 रु से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं समझा जाता।

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कुछ दिन पहले मेरे परम मित्र के साथ बस स्टैंड के किनारे लगी दुंकन पर खाना खाने चला गया था, कुछ ५-६ साल बाद गया था तो इस उम्मीद में था की खाने के कीमत में कम से कम ३ गुना बढोतरी तो हो ही गई होगी लेकिन देखा की वहाँ आज भी १५ रूपये में इतनी पूरियाँ और सब्जी मिल जाती हें की एक स्वस्थ इंसान का पेट भर सके और कोई गरीब इंसान तो उतने खाने में निहाल ही हो जाये. मैंने खाना खाने के बाद दुकान के मालिक को सम्मान सहित धन्यवाद दिया की आपने आज भी इतनी कम कीमत पर लोगो को खाना खिलाना जारी रखा है.

दुकानदार महोदय का जवाब था की हम गरीब भी दो पैसे कमा लेते हें और गरीब इंसान का पेट भी भर जाता है, इश्वर सेवा अलग से हो जाती है और क्या कहे. उनकी बाते सुन कर दिल गदगद हो गया था और दिल से ढेर सारी दुवाए निकली थी 

उनके भोजनालय और उनके लिए पर सोचता हूँ आज जा कर उनसे वो सारी दुवाए वापस मांग कर ले आऊँ साथ ही उन्हें खरी खोटी भी सुना दूं की खुद को गरीब कहते हो और ये कहते हो की गरीबो का पेट भर जाये लेकिन गरीबो को खाना खिलाने 

के लिए दिन में ३० रूपये लूट लेते हो, ये कहाँ का परोपकार है तुम्हारा, तुम गरीबो के साथी नहीं उनके दुश्मन हो क्यूँ की गरीब इंसान तो दिन में १७ रूपये से ज्यादा खर्च कर ही नहीं सकता और अगर वो खर्च कर रहा है तो गरीब नहीं हो सकता मतलब की तुम्हारे यहाँ सिर्फ पैसे वाले लोग खाना खाने आते हें गरीब नहीं.

आज जब घर से निकला तो सोचते हुए निकला की कौन गरीब होगा 
यही सोचते हुए रास्ते में निकला तो चौराहे पर देखा एक मासूम बच्चा मुलायम कपडे बेच रहा था जो की गाडी या कंप्यूटर साफ करने के काम में लिए जा सकते थे, उससे पूँछ लिया की दिन भर में कितना कमा लेते हो तो बोला ५०-६० रूपये कमा लेता हूँ और मैंने पूंछा की खर्च कितना करते हो तो बोला "पूरा पैसा खाने में ही खर्च हो जाता है कभी कभी कम पैसे मिलते हें तो सिर्फ एक वक्त ही खा पाता हूँ"  मैंने सोचा ये गरीब नहीं हो सकता जो लड़का दिन के ५० रूपये खाने में खर्च करे वो गरीब कैसे होगा क्यूंकी गरीब इंसान तो १७ रूपये से ज्यादा खर्च कर ही नहीं सकता.

सोचते सोचते सर दर्द करने लगा तो जाने कैसे एक छोटी सी चाय की दुकान पर बैठ गया वहाँ देखा एक गरीब सा दिखने वाला इंसान आया जिसे देखने से ही ऐसा लग रहा था मनो गरीबी की देवी ने उसके शरीर तो शरीर आत्मा को भी अपना मूल 

निवास स्थान बना लिया है. मै चाय पी रहा था तो देखा उस गरीब से दिखने वाले व्यक्ति ने एक चाय ली और बात ही बात में खत्म कर के दूसरी चाय भी मांग ली, चाय खत्म करने के बाद उसने दुकान दार को जेब से १० रूपये का नोट निकाल 

कर दिया,एक बड़ा सा बोरा उठाया और रास्ते पर चलता बना. 

जाने क्यों मैंने दुकानदार से उस व्यक्ति के बारे में पूँछ लिया तो दुकानदार ने उस व्यक्ति पर बड़ी ही दयनीयता दिखाते हुए कहा गरीब इंसान है साहब, पर बड़ा ही ईमानदार और भला, कोई बुरी आदत भी नहीं है कोई नशा नहीं करता बस चाय का 

बड़ा प्रेमी है दिन भर में ६-७ चाय पी जाता है. दिन भर यहाँ वहा से प्लास्टिक की खाली बोतले और दूसरा फालतू सामान ढूँढता रहता है और उसे ही बेच कर चाय पीता है और कभी एक वक्त तो कभी दोनों समय का खाना खाता है, कभी कभी 

ऐसा भी होता है की ज्यादा पैसे नहीं जमा कर पाता तो सिर्फ चाय पी कर पूरा दिन निकाल देता है. 

दुकानदार ने कहा था गरीब इंसान है लेकिन मै सोचता हूँ जो इंसान दिन भर में ३०-३५ रूपये की चाय पी जाता हो (खाना ना खा पाता हो वो अलग बात है) वो गरीब कैसे हो सकता है क्योंकि गरीब इंसान तो १७ रूपये से ज्यादा खर्च कर ही नहीं सकता.

अभी गुबार फटा नहीं है इसी विषय की अगली कड़ी मे और लिखा है

क्या आप किसी गरीब इंसान को जानते हैं  अगर हाँ तो मुझे बताये जरूर 

कृपया अपनी राय अवश्य दें 

3 comments:

anjule shyam said...

दुकानदार महोदय का जवाब था की हम गरीब भी दो पैसे कमा लेते हें और गरीब इंसान का पेट भी भर जाता है, इश्वर सेवा अलग से हो जाती है और क्या कहे. उनकी बाते सुन कर दिल गदगद हो गया था और दिल से ढेर सारी दुवाए निकली थी
-------------------------मेरी भी दुवा इस दुवा में शामिल समझी जाए.... मैं तो अक्सर लोगों से कहता हूँ ... भाई ये चमचमाती मेजो पे खाने से बेहतर है .... ठेले पर खा लेना...मैं तो जहान भी ये ठेला वाले मिल जाएँ वहीँ खाता हूँ..मेरे एक दोस्त को बड़ी परेशानी होती है मेरे साथ चलने में क्योंकि उनका स्टेटस मेंटेन नहीं रह पता मेरे साथ कहीं भी किसी दुकान पर चाय पी ली..कहीं भी खा पी लिया....बरहाल मैं तो कहता हूँ...ऐसी दुकानों परही खाया पिया जाए....पैसे की बचत तो कम से कम होती है और सेहत उसका क्या..? क्या गारंटी है की जिस चमचमाती मेज वाले रेस्टोरेंट में आप खाते हैं वहां सब कुछ साफ सफाई से ही मिल जाता है... फर्क सिर्फ इतना होता है वहां आपको कैसे बनता है किस टाइप की सब्जियां होती हैं देखने को नहीं मिलता यहाँ सब कुछ सामने होता है....
इस संवेदनशील पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत धन्यबाद....

captain said...

bhaai is paribhaasha se to ye desh poorn roop se viksit najar aane lagaa hai.
bahut khoob ....shukriya is post k liye

आक्रोश और आग्रह said...

धन्यवाद कैप्टेन और अन्जुले

अभी इसी विषय पर और लिख रहा हूँ इसी पोस्ट की ३-४ कड़ियाँ और है जो मेरे सामने ही है आज सबेरे से बस उसी विषय में जानकारी निकलने की कोशिश कर रहा था ... दूसरा भाग लिख चूका हूँ और तीसरा लिखने की तय्यारी में हूँ

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