जब एक सफाई करने वाले कपडे को चौराहे पर बेचने वाला मासूम बच्चा या भूखा रहने वाला मेहनतकश ईमानदार इंसान गरीब नहीं हो सकता (जानने के लिए मेरी पिछली पोस्ट हमें गरीब ना कहना हम मान हानि का मुकद्दमा कर देंगे पढ़े ) तो सोच रहा था की गरीब कौन हो सकता है.
यही सोचते सोचते सड़क पर निकल गया ये देखने के लिए की कोई तो होगा जो सरकार के अनुसार गरीबी रेखा के नीचे आता हो, जो पूरी ईमानदारी से गरीब हो
मै सड़क पर निकला और हर उस इंसान से पूंछने लगा जो मुझे गरीब लगा "क्या आप गरीब है" उनका जवाब तो हाँ था लेकिन वो ईमानदार गरीब लोग नहीं थे क्योंकि वो सब के सब १७ रूपये से ज्यादा खर्च करने वाले लोग थे
मुझे एक साइकिल का पंक्चर बनने वाला दिखा मैंने उससे पूंछा क्या आप गरीब हें तो उसका जवाब था हाँ, मैंने पूंछा दिन में कितना खर्च करते हें आप तो जवाब मिल बस २ चाय पीता हूँ और २-३ गुटखे खाता हूँ मैंने हिसाब लगाया तो ये तो १७
रूपये से ज्यादा हो रहा है क्यूँ की उन्हें खाना भी तो खाना ही होता होगा मतलब की ये साहब भी गरीब नहीं है.
मै और आगे गया देखा एक साहब बड़ी ही शांति से जूतों की मरम्मत का काम कर रहे थे, मैंने उनसे भी सवाल किया जय आप गरीब है तो उनका जवाब था हाँ, मैंने फिर सवाल किया आप दिन में कितना रुपया खर्च करते हें तो अजीब सी नजरो से देखते हुए जवाब दिया की यही कुछ १२-१३ रुपये चाय पानी मिला कर और १० रूपये बस से घर आने जाने का किराया. मुझे यहाँ भी निराशा ही मिली ये साहब भी गरीब नहीं थे.
मै आगे बढ़ता रहा और हर वो शख्स जो मुझे गरीब लगा मैंने उससे यही दो सवाल किये "क्या आप गरीब है" और "आप दिन में कितना पैसा खर्च करते हें" कमोबेश जवाब भी हर बार लगभग एक जैसे ही थे सिर्फ शब्दों और संख्याओ में मामूली सा अंतर था, लेकिन एक और बात जिसमे मुझे समानता दिखी वो थी उनकी आँखे जिनमे एक जैसे सवाल थे "क्या आप हमारा अपमान करने के लिए ये सब पूँछ रहे हैं " और उनकी आँखों के इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था
मै ये सुन कर लगभग हिम्मत हारता हुआ शहर के एक मंदिर के बाहर पहुंचा और वह बैठे एक याचक से यही दो सवाल कर लिए और ये उम्मीद करने लगा की यहाँ तो मुझे कोई सफलता मिलेगी गरीबो को ढूँढने में लेकिन अफ़सोस मेरी किस्मत यहाँ भी मुझे निराशा ही मिली क्योंकि वो याचक भी १७ रूपये से ज्यादा खर्च करता था
पर इस निराशा से भी मुझे गर्व हुआ ये जान कर की हमारे देश में कोई गरीब नहीं है.
इस सब को देखने के बाद मेरा मन हुआ की मै केन्द्र सरकार और योजना आयोग के राज्य सरकारो पर लगे आरोपों को सही मान लूं जिसमे योजना आयोग का कहना था की देश में ४ करोड से ज्यादा गरीब तो हो ही नहीं सकते लेकिन राज्य सरकारों ने जो संख्या BPL से नीचे जीने वाले लोगो की भेजी है वो इससे कही ज्यादा है.
मेरे अनुभव के आधार पर तो मै यही कहूँगा की ४ करोड भी ज्यादा ही है..
अभी गुबार पूरा फटा नहीं है और इसी विषय पर अगली कड़ी में पढ़े लिखने वाला हूँ एक दिन में १७ रूपये से कम खर्च करने वाले लोग क्योंकि मुझे कुछ ऐसे लोग भी मिले हैं जो की १७ रूपये से कम खर्च करते हैं एक दिन में उनके बारे में पढ़ें .
एक दिन में १७ रूपये से कम खर्च करने वाले लोग
1 comments:
गरीबों की खोज जारी है...बढियां ...शानदार लिख रहे हैं आप....सवाल के जवाब भी शायद सही जगह ही तलाश रहे हैं ये सड़क हैं जो...हार सवाल के जवाब इसके गर्भ में छुपे हैं....
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