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Tuesday, March 15, 2011

होली के हुडदंग की मलीनता और संस्कृति के ठेकेदारों से एक सवाल


होली है भाई होली है बुरा ना मानो होली है..............

सालो पहले पहले इन शब्दों को सुनकर दादा जी ने मुझसे कहा था बेटा ये मस्ती में सराबोर ऐसे कुछ शब्द जो की दुश्मन को भी दोस्त बना दे, वर्षों से चली रही दुश्मनी को भी मिटा दे, रिश्तों की गरिमा में एक ऐसी मिठास घोल दे जिसका जायका सालो साल फीका पड़े, लेकिन आज जब इन्ही शब्दों को सुनता हूँ तो एक अजीब सा डर लगता है.

होली का वो हुडदंग तो आज भी नजर आता है लेकिन उसमे आत्मीयता और प्यार नहीं नजर आता ना ही उस हुडदंग पर लोगो का विश्वाश नजर आता है. शायद विश्वाश ना करने की वजह ये है की हम सब ने अपने दिल और आत्मा पर इतना मैल लपेट लिया है की रंग अब दिल पर चढ़ने ही नहीं पाता.

आज लोग होली के बहाने दिलो से दिल मिलाने के बजाय और दूरियों को बढ़ा लेते हैंदुश्मनी खत्म करने के बजाय एक दुसरे के दिलो में भरी नफरत की आग को सुलगा कर और बढ़ा ही लेते हैं और रिश्तों की मिठास के बजाय उसमे ऐसे कड़वाहट डाल दी जाती है जिसका असर जाते जाते अरसा निकल जाता है

आज जब होली के हुडदंगी टोली बना कर गलियों में निकलते हैं, तो माँ बाहर या छत की मुडेर से टिक कर खड़ी बेटी है को एक धमकी भरे अंदाज में डांट लगाते हुए घर में जाने का आदेश दे देती है, और इसका कारण सिर्फ इतना होता है की माँ उन हुडदंगियो पर भरोसा ही नहीं कर पाती क्यूँ की माँ को हर हुडदंगी में ऐसा इंसान नजर आता है जो होली के बहाने छेड़खानी करने का बहाना ढूढंता है.

मै मा की इस भावना को तो गलत नहीं मानूंगा आज हालत ही ऐसे हैं लेकिन इस वजह से एक सवाल उन सभी संगठनों से जरूर पूंछना चाहूँगा जो खुद को भारतीय संस्कृति का संरक्षक होने का दंभ भरते हैं और प्रेम दिवस के खिलाब बड़े बड़े आन्दोलन करने की बात करते हैं, बिना किसी अधिकार के चौराहों पर बेचने के लिए लाल गुलाब ले कर खड़े किसी मासूम बच्चे से फूल छीन कर नाली में बहा देते हैं और बड़ी ही शालीनता से अपने प्रेम का निवेदन करने वाले युवको को भी पीट पीट कर लहू लुहान कर देते हैं.

क्या उन्हें होली पर होने वाली भारतीय संस्कृति की क्षति नजर नहीं आती.

क्या इन संगठनों को ये दिखाई नहीं देता की ये  होली की आड में जो जबरन मस्ती और छीटाकशी लड़कियों पर की जाती है वो गलत है, क्या भारतीय संस्कृति की रक्षा करने का दंभ भरने वाले इन संगठनो का  इसमें नारी और संस्कृति का अपमान नहीं दिखाई पड़ता.

जहा तक मेरी जानकारी है पहले फाग दिवस प्रेम दिवस का ही दूसरा नाम था लेकिन आज होली है के बहाने किसी महिला से होली खेलते समय ये कोशिश की जाती है की जितना नारी शरीर को भोगा जा सके भोग लिया जाये. 

मै खुद को कोई बहुत समझदार या ज्ञानवान व्यक्ति नहीं समझता हूँ लेकिन फिर भी ये बात अगर मेरे समझ में आती है तो क्या ऐसे संगठनों के पदाधिकारीयों को समझ में नहीं आ सकती और क्या उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती इस बारे में कुछ करने की

अगर कोई ये कहे की ये भारतीय संस्कृति का अंग है और हम इसे गलत नहीं मानते तो मै उन सभी से यही कहूँगा की फिर प्रेम दिवस पर भी अपनी नाक दूसरों के मामले में अडाना बंद कर के जिए और जीने दे.

मै मानता हूँ की कुछ बाते लोगो को गलत लग सकती है लेकिन मैंने मेरा आँखों देखा लिखा है और कुछ नहीं जिन लोगो को मेरी बाते गलत लगी हो उनसे हाथ जोड़ कर क्षमा चाहूँगा 

अभी बस नहीं किया है बात निकली है तो दूर तलक जायेगी 

4 comments:

anjule shyam said...

अब लगी है जब इज्जत बाजार में नीलम होने// तो हम घर पे चले हैं इज्जत बचाने//
होली का हुडदंग में अक्सर कई किस्म के जिव होते हैं माँ की चिंता जायज है... और दूसरी बात आत्मीयता की तो वो गयब हो गई है हमारी दुनिया से..हमें अपने से ज्यादे अपने पेंट और शर्त की चिंता है...हम एक रेस में शामिल हैं... देखते हैं कोंन किस्से आगे कितनी जल्दी निकल जाता है..अब इसमें कहाँ कोंन कैसे किसकी आत्मीयता ढूंढता है....

Sushil Bakliwal said...

बिल्कुल सही चिन्तन है आपका । आभार सहित...

शुभागमन...!
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नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव.

उन्नति के मार्ग में बाधक महारोग - क्या कहेंगे लोग ?

SANSKRITJAGAT said...
This comment has been removed by the author.
आक्रोश और आग्रह said...

शुशील जी और आनंद जी आपका बहोत बहोत धन्यवाद

आपकी सलाह का पूरा पूरा पालन करने की कोशिश करूँगा

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