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Monday, March 21, 2011

अफसरो, नेताओं तथा पदाधिकारियों के लिए एक चिट्ठी और सत्याग्रह



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श्री मान

विन्रम निवेदन के साथ आपको ये पात्र लिख रहा हूँ.

मै इस देश का एक आम नागरिक हूँ और मुझे लगता था की मै गरीब हूँ हालाकि मै खुद को कभी गरीबी रेखा के नीचे नहीं मानता था और गरीबी रेखा के किसी लाभ को मैंने लेने की कोशिश नहीं करी परन्तु फिर भी मै खुद को गरीब तो मानता ही था, लेकिन जब पता चला की भारतीय योजना आयोग और भारत सरकार के अनुसार हमारे देश में गरीबी का पैमाना १२ रूपये और १७ रुपये के खर्च का है तो मुझे खुद पर शर्म आने लगी, शर्म इस बात को ले कर थी की मै खुद को गरीब कैसे मान सकता हूँ जब की मै रोज १७ रूपये से ना जाने कितने ज्यादा पैसे खर्च करता हूँगा किसी ना किसी तरह से. फिर मैंने जब देखा की मै तो गरीब नहीं हूँ तो मै शहर में गरीबो को देखने निकला था और मुझे एक भी ऐसा गरीब नहीं मिला जो भारतीय योजना आयोग के अनुसार गरीब हो.

हालाकि माननीय उच्चतम न्यायलय के अनुसार ये गलत है और इसमें बदलाव की जरूरत है.

पर मेरे पास आप के लिए मात्र दो सवाल है

पहला है ये बदलाव माननीय उच्चतम न्यायलय के आदेश के बाद ही क्यों होने वाले हें, क्या समस्त अफसरों और नेताओ का कोई फर्ज नहीं बनता उन लोगो के लिए जिनकी वजह से वे सब पदों पर आसीन है या जिनकी मदद करने के लिए उन्हें ये कुर्सी मिली है. क्या उन्हें इस कुव्य्स्था पर ऊँगली नहीं उठाना चाहिए थी.

और दूसरा सवाल ये है "क्या आप इस बारे में सरकार को अपनी राय देंगे की गरीबी का पैमाना क्या होना चाहिए?"

कृपया मेरी बातो को व्यक्तिगत रूप से ना लेवें, और ना ही मुझे आप से किसी भी सवाल का जवाब चाहिए पर आपको एक खुद को गरीब समझने वाले हिन्दुस्तानी के मन की भावनाये बताना चाहता था इस लिए ये पूरा चिठ्टा आप को लिख कर भेज रहा हूँ साथ ही कुछ और ऐसे लोगो तक भी पहुँचाने की कोशिश करूँगा जिनसे मै इस बात की उम्मीद कर सकता हूँ की वो गरीबो को न्याय दिलवाएंगे

मै कोई नेता नहीं हूँ ना ही कोई समाजसेवक और ना ही कोई क्रांतिकारी या आंदोलक पर मै समझता हूँ की जब तक हम इन सब के भरोसे बैठे रहेंगे हमारा कुछ नहीं होगा इस लिए इस बार मै ये कदम उठाते हुए अकेले ही नेता, मंत्री और कलेक्टर तक मेरे दिल की बात एक चिट्ठी से पहुँचाने की कोशिश करूँगा. अगर आप को लगता है की मेरा रास्ता सही है तो आप इसमें मेरा साथ दे.

कुछ लोगो ने मुझे ये भी कहा है की कोई भी तुम्हारी चिट्टी को पढ़ेगा भी नहीं, पर मै फिर भी मेरी इस कोशिश को शुरू करूँगा और कोशिश करूँगा की ये काम मै हर उस संवेदनशील मुद्दे के लिए करता रहूँ जहा मेरी समझ हो

इस चिट्ठी के साथ विनम्र निवेदन सहित चार लेख भी जोड़ रहा हूँ जो की मैंने मेरे ब्लॉग के लिए लिखे थे.

ये चिट्ठी आप तक इस उम्मीद के साथ भेज रहा हूँ की आप शायद इस मामले में कुछ कर सकते हो.

धन्यवाद
भवदीय
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ये चिट्टी मै मेरे शहर के उन व्यक्तियों तक पहुँचाने की कोशिश करूँगा जो शायद इस व्यस्था को बदलने की क्षमता रखते हैं (क्रप्या ध्यान दें बदलने की कोशिश करना और क्षमता होना दोनों अलग अलग बाते हैं) और मै इश्वर से ये प्रार्थना करूँगा की वो लोग कम से कम इस बदलाव के लिए कोशिश जरूर करें.

इस चिट्ठी के साथ मै मेरी पुरानी चार ब्लॉग पोस्ट भी शामिल करूँगा.

हमें गरीब ना कहना हम मान हानि का मुकद्दमा कर देंगे
क्या आप किसी गरीब इंसान को जानते हें अगर हाँ तो मुझे जरूर बताये
एक दिन में १७ रूपये से कम खर्च करने वाले व्यक्ति
किसी को गरीब बोलने के पहले किन बातों का ध्यान रखें


अगर आप को लगता है मेरा रास्ता सही है और इससे कोई भी बदलाव आ सकता है तो क्रप्या आप भी इस कड़ी को आगे बढ़ा कर मेरा साथ दें और अपने शहर के अफसर और नेताओ तक इस बात को पहुँचाने में योगदान दे

ये एक सत्याग्रह है जिसमे एक बदलाव की उम्मीद की जा सकती है

धन्यवाद

1 comments:

vandana gupta said...

बेहद उम्दा और जागरुक करता आलेख सोचने को मजबूर करता है।

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