कल देखा गली में कुछ लडको को खेलते हुए
तो मुझे भी मेरा बचपन याद आ गया
ऐसा लगता है जैसे कल की ही वो बात थी
कंचो से कंचे टकराते और फिर किसी कंचे को निशाना लगाते
दांव लगा तो सब अपना वर्ना हम गुस्से से भुनभुनाते
ले कर डंडा और एक छोटी सी गुल्ली
सारा दिन सडको पर एक दुसरे से दौड लगवाते
कभी लट्टू घुमाते और साथियों को छकाते
तो कभी गुलाम डंडी खेलते
पत्थरो के सहारे लकड़ी ले दूर तक निकल जाते
कभी चोर पुलिस खेलते जब
तो किसी के भी घर में जा कर छुप जाते
या कही किसी पेड को थोड़ी देर के लिए आपना किला बनाते
गलिया तो आज भी वही है
लेकिन अब कंचो की आवाज नहीं आती
लड़के तो आज भी है लेकिन
वो ना लट्टू घुमाते हैं ना लकडियों से किसी को छकाते हैं
चोर पुलिस कोई खेले भी तो कैसे
पेड तो बचे ही नहीं मोहल्ले में अब
और किसी के घर में घुसने के पहले ही लोग बाहर भगाते हैं
गुल्ली डंडा तो कोई खेलता ही नहीं है
अब तो सारे लड़के क्रिकेट को ही अपना बनाते हैं
0 comments:
Post a Comment