आज शाम को घर आ रहा था तो देखा की सड़क पर भीड़ लगी हुई थी
देख तो दो लड़के पड़े हुए थे लगभग बेहोशी की हालत में और दोनों बुरी तरह से खून में लथपथ थे
वहा रुका और पता किया तो पता चला की दोनों लड़के एक दुसरे से बुरी तरह से टकरा गए थे और बड़ी ही बुरी स्थिति में थे, ऐसे में मैंने सबसे पहला कम तो वही किया जो हर बार ऐसी स्थिति में करता हूँ एम्बुलेंस के लिए १०८ नंबर पर फोन किया और दूसरी तरफ से बड़ा ही त्वरित जवाब भी मिला. आपात व्यस्था को सारी स्थिति से अवगत कराने और पता देने के बाद मै लडको की तरफ मुड़ा तो देखा की वहाँ काफी लोग एकत्रित हो चुके थे जिनमे कई लड़के २०-२२ साल की उम्र के ही थे
वो सभी लड़के इन चोट खाए लड़की की तीमारदारी में लगे हुए थे कुछ लोगो ने गाडिया उठा कर कोनों पर लगा दी थी और कुछ उन लड़के की जेब देखने लगे ताकि लड़को के घर वालो को खबर की जा सके देख कर बड़ा अच्छा लगा
दोनों लड़के लगभग बेहोशी की हालत में थे और सर और बाजु से काफी खून निकल रहा था तो जब मैंने रुमाल निकाल कर एक लड़के के बाजू पर बंधा तो दुसरे लोगो ने अपना रुमाल निकाल कर देने में बिलकुल देर नहीं की.
इसी बीच मैं कोशिश करता रहा की दोनों लड़के होश में रहे और उनका खून बहना कम हो सके तो जो बात मुझे सबसे अच्छी लगी वो ये थी की वह मौजूद दुसरे लोग मेरी मदद के लिए अपने आप को प्रस्तुत कर चुके थे बिना इस बात की चिंता किये की उनके कपडे खून से खराब हो सकते हैं
मेरा मित्र साथ में ही था मैंने उससे कहा की पानी का इन्तेजाम कर तभी किसी ने मेरे हाथ में पानी की पूरी पैक बोतल थमा दी जो की उस व्यक्ति ने १२-१५ रूपये दे कर खरीदी होगी.
कुछ लड़के इस व्यस्था में लगे थे की भीड़ की वजह से वह हवा का आना जाना ना रुके.
थोड़ी देर बाद दोनों लडको के सम्बन्धी वहा पहुंचे और उन दोनों को अस्पताल ले गए.
ये सारा घटनाक्रम लगभग १५ मिनट चला और इस पूरे समय सारे लड़के आपात कालीन स्वयंसेवकों की तरह वही उपस्थित थे और सभी ने अपना अपना काम स्वयं ही बाँट लिया था बिना ये जानने की कोशिश किये की अगला व्यक्ति की धर्म या मजहब का है बड़ा है या छोटा है. दिल में सिर्फ एक भावना थी हमें इन लडको को सही हाथो में पहुँचाना है
ऐसा देख कर अच्छा लगा और दिल में उम्मीद का दिया फिर से इस उत्साह के साथ जलने लगा "हम अभी भी इंसान ही है "
1 comments:
umeed hai ye insaniyat zinda rahegi...:)
Post a Comment