८ मार्च को कुछ ऐसा हुआ जिससे दिल बड़ा ही द्रवित हो गया चाह कर भी कुछ सोच नहीं पा रहा था तो सोचा अब इसी बारे में लिखू
उस दिन मेरे एक चाचा जी की छोटीबहु ने बेटी को जन्म दिया और उसके बाद उनके पूरे परिवार का मुह ऐसे उतर गया जैसे उस बच्ची ने जन्म ले कर कोई बहुत बड़ी गलती कर दी हो.
मुझे बच्ची के जन्म की जानकारी फोन कर के माँ ने दी लेकिन ये हिदायत भी दे डाली की मै वहाँ ना जाऊं. मैंने कारण पूंछा तो जवाब मिला घर पर बात करेंगे.
आम तौर पर ऐसा होना चाहिए की बच्चे के जन्म पर मिठाई तो बांटी ही जाना चाहिए लेकिन ना किसी ने मिठाई बांटी ना ही ऐसी कोई कोशिश की, मुझे माँ ने इस लिए मना करा था यदि मै जाता तो मिठाई जरूर ले कर जाता जो की चाचा के परिवार को अच्छा नहीं लगता.
मैंने जब घर पर पिता जी से इस बारे में मेरी राय राखी तो उनका जवाब था बच्ची शल्य क्रिया से हुई है इस लिए सब परेशान है तो कोई मिठाई बाँट नहीं पाया होगा पर उसी परिवार में आज से ६ महीने पहले एक बेटा हुआ था जो की ऐसी ही शल्य क्रिया से हुआ था पर तब पूरे परिवार में खुशियों की बहार थी, मुझे फोन कर कर उनके पूरे परिवार ने जानकारी दी और हर व्यक्ति ने कहा की मै चाचा बन गया हूँ और मिठाई ले कर आऊँ.
ये कैसा दोगलापन है हमारे समाज का, एक संतान के पैदा होने पर कर्जा ले कर भी घी के दिए जलाये जाते हैं लड्डू बांटे जाते हैं, और दूसरी संतान के जन्म पर पैसा होने पर भी कोई खुशिया नहीं मनाई जाती.
मेरी जानकारी में ये प्रसव २० दिन बाद होना चाहिए था इस लिए मैंने घर वालो से जब ये जानने को कोशिश की तो जो जानकारी मिली उससे एक नया सवाल सामने खड़ा हो गया
पता करने से मालूम हुआ की बहु (प्रसूता) इसके पहले मायके में थी और कुछ दिन पहले ही बहु के मायके वाले उसे यहाँ छोड़ कर गए थे उन सभी चिकत्सकीय जांचो के साथ जो उसके मायके में हुई थी और पता चला की उन्ही जांचो में से कुछ में इस तरह की तकलीफे दिख रही थी जो जच्चा और बच्चा दोनों के जीवन को मुश्किल में डाल सकती थी और ये सारी बाते जांचो पर चिकिस्तक के द्वारा साफ साफ लिखी हुई थी. चिकिस्तक की टिप्पणी से ये बात तो जाहिर हो जाती है की इस बाबद पूरी जानकारी बहु के मायके वालो को थी लेकिन सिर्फ इस लिए की हमारे पैसे खर्च ना हो उन लोगो ने ऐसे स्थिति में भी बहु को १००० किलोमीटर का सफर कराया और यहाँ आने के बाद भी जानकारी दिए बिना वापस चले गए.
मुझे हमेशा सिखाया गया है की हमारी परम्परा दुनिया की सबसे महान परम्परा है लेकिन अगर ये हमारी परम्परा का हिस्सा है तो हम कैसे श्रेष्ठ हो सकते हैं.
हम कैसे महान हो सकते हैं जब हम एक जननी को अपनी जान दांव पर लगा कर एक नए जीवन को इस दुनिया में लाने के बाद भी सिर्फ इस लिए तिरस्कृत करते हैं क्योंकि उसने एक लड़की को जन्म दिया है.
हम कैसे महान हो सकते हैं जब हम एक नन्ही जान के जन्म पर खुश होने के बजाय सिर्फ इस लिए दुखी होते हैं क्योंकि वो नन्ही जान एक कन्या है
हम कैसे महान हो सकते हैं जब हम एक लड़की के जन्म लेते ही उसे बोझ समझने लगते हैं, और उस लड़की की शादी के बाद ऐसा समझते हैं की एक बोझ दूर हो गया है
मेरी समझदानी की पिटारी बहुत छोटी है पर मै आज तक नहीं समझ पाया हूँ लड़कियों को पैदा होते ही क्यों बोझ समझा जाने लगता है और क्यों माँ बाप बेटी की शादी करने के बाद ये मानते हैं की हमारे सर से मुसीबत दूर हो गई, क्यूँ शादी के बाद माँ बाप भूल जाते है की बेटी अभी भी उनकी ही है
कुछ लोग बेटे इस लिए चाहते हैं ताकि उनके कुल का नाम आगे बढ़ सके मै ऐसे सभी लोगो से मेरा एक छोटा सा सवाल है जरा अपने दादा जी के दादा जी का नाम बताइए..अगर किसी के पास इस सवाल का जवाब है तब तो वो कुल की बात करे वर्ना ना करे
कुछ लोग कहते हैं की बेटा बुढ़ापे में हमारी देख भाल करेगा मेरा अगला सवाल "क्या आप आपके माँ बाप की उतनी सेवा कर पा रहे हैं जितनी आप आपके बेटे से उम्मीद कर रहे हैं" अगर आप का जवाब हाँ है तो मै कुछ नहीं कहूँगा लेकिन अधिकतर मौको पर ईमानदार जवाब ना ही होगा
इस विषय पर मैंने बस नहीं की है बात निकली है तो दूर तलक जायेगी.................
3 comments:
Waah Sandeep.. ye hui na baat. hame in sab ke virodh me khade hone ki jaroorat hai.
deepak ji aap sahi kah rahe hai ! agar yuva ek sath jud kar virodh kare to ye burai door ho sakti hai
आप ने सही लिखा है| लड़की होना कोई अभिशाप तो नहीं है| हम सभी को इस बुराई को ख़त्म करने के लिए आगे आना चाहिए|
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