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Saturday, February 12, 2011

हम तो मूलत: इसी देश से हैं :पिताजी की दी हुई सीख


आज जब भी कोई मुझसे पूंछता है की आप मूलत: कहा से हैं तो मेरा जवाब होता है "इसी देश से हूँ पूर्ण रूप से भारतीय"

हालाकि हमेशा से ऐसा नहीं था आज से ८ साल पहले कोई ये सवाल करता था तो मेरा जवाब होता था जी मै मूल रूप से उत्तर प्रदेश से हूँ लेकिन एक दिन किसी पारिवारिक समारोह में पिता जी के सामने किसी ने यही प्रश्न मुझसे पूँछ लिया और मेरे उत्तर पर मुझे पिताजी से एक बड़ी ही प्यार भरी चपत और ऐसी सीख मिली जो की मै अपने जीवन में न कभी भूलना चाहूँगा न ही भूल सकता हूँ

मेरे उत्तर को सुन कर पिता जी ने प्यार से मेरे सर पर चपत लगते हुए कहा "बेटा हम उत्तर प्रदेश से नहीं इस देश से हैं पूरी तरह से भारतीय"

पिता जी की इस बात से वहा बैठे कई लोगो के चेहरे पर एक प्रश्नवाचक चिन्ह दिखाई देने लगा और मै शांति से पिता जी के आगे आने वाले शब्दों का इन्तेजार करने लगा।

और जो पिताजी ने कहा उन शब्दों को पूरी तरह से वैसा ही लिखने की कोशिश कर रहा हूँ

पिता जी ने कहना शुरू किया "हम किसी एक प्रदेश या क्षेत्र के नहीं है बल्कि पूरा देश ही हमारा है और हम पूरे देश के हैं। जब मै मेरी माँ के पेट में आया तो माँ और पिता जी महराष्ट्र में थे, मेरा जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ और मेरे मुह में जाने वाला आनाज का पहला दाना महाराष्ट्र में कमाए हुए पैसे से गया था, जो भी मेरा अक्छर ज्ञान है वो सब मैंने बिहार में सीखा और मेरी शादी एक ऐसी लड़की से हुई जिसने आपना आधा जीवन गुजरात में बिताया था, घर से भागने के बाद पहली बार मै पंजाब गया और वहा जीवन में अपने पैरो पर खड़े होने का पहला सबक सीखा, और उसके बाद दिल्ली, बम्बई, गुजरात, राजस्थान में काम करना सीखा, मध्य प्रदेश में मुझे मेरी पहली स्थायी नौकरी मिली और जिस इन्सान ने मुझे नौकरी दिलवाई थी वो एक दक्षिण भारतीय था। अब मध्य प्रदेश में मेरा घर है यहाँ मेरे बच्चे पले बढे लेकिन इनकी मंजिल कहा है वो किसी को नहीं पता तो फिर हम सिर्फ उत्तर भारतीय कैसे हुए। मेरे लिए पूरा देश मेरा है और मै इस देश का और किसी के पास प्स इस बात का अधिकार नहीं है जो मुझे ऐसा कहने से रोक सके, और जब मै इस देश का हूँ तो मेरी संतान भी इसी देश की हुई ना।"

मेरे पिता जी की इस बात से वो कई दिनों तक वहा बैठे कुछ पढ़े लिखे उत्तर भारतियों की आँख में खटकने लगे थे उन्होंने पिता जी को अनपढ़ कह कर उनका विरोध भी किया था लेकिन मेरे पिता जी आपनी बात पर अडिग थे और उन्होंने हमें सिर्फ यही सिखाया था की हम मूलतः इस देश से हैं किसी प्रदेश से नहीं।

उन पढ़े लिखे व्यक्तियों ने पिता जी से ये भी कहा था की अपनी जड़ो से अपनी मिटटी से प्यार करना तो सीखो और मेरे पिता जी का जवाब था "इस देश की पूरी मिटटी मेरी ही है तो मै क्यों किसी एक जगह की मिटटी को मेरा कहूं आज आप कहते हैं की मै आपने आप को उत्तर भारतीय कहूं उसके बाद उत्तर प्रदेश मे जिस जिले का मै हूँ वह लोग कहेंगे की मै जिले को आपना कहूं फिर जिले के बाद गाँव और गाँव के बाद टोले (गाँव के अन्दर एक हिस्सा) को मेरा कहूं और आप ये चाहेंगे की मै हर छोटी जगह के लिए बड़ी जगह से कम भूमि भक्ति रखूँ तो ऐसी भूमि भक्ति आप कीजिये मेरे लिए तो पूरे देश में ही ये सभी कुछ शामिल है".

पिताजी की भावनाओ पर वहा बैठे कुछ प्रकांड पंडितो द्वारा ये भी व्यंग्य किया गया था की अनपढ़ इन्सान को अपनी ही बात बड़ी दिखती है लेकिन मुझे मेरे पिता पर घमंड है और उनकी सिखाई इस सीख पर मुझे गर्व है क्योंकि मुझे मेरे पिताजी ने देशवासी बनना सिखाया था न की प्रदेशवासी मुझे एकता सिखाई थी अलगाव नहीं

सामन्यतः मै ब्लॉग पर कहता हूँ की आपनी राय दें लेकिन इस पोस्ट के लिए कहूँगा की अगर आपकी राय मेरे पिता जी की राय से अलग है तो कृपया अपने पास रखे मुझे नहीं चाहिए आपकी राय

3 comments:

अजय कुमार झा said...

प्रिय मित्र ,
आपकी ये पोस्ट ही बता रही है कि आपके पिता एक काबिल और बहुत ही नेक दिल वाले व्यक्ति थे जिन्होंने अपने संस्कार और विचारों को आप के माध्यम से अगली पीढी तक पहुंचा के अपना जीवन सार्थक किया । नि:संदेह हम आपके पिताजी के विचारों और भावना से पूर्णत: सहमत हैं और नतमस्तक भी । आपका पहला फ़ौलोवर बनकर मुझे खुशी मिली है । शुक्रिया और शुभकामनाएं । पोस्ट में एक चित्र जरूर डाला करें । थंबनेल पोस्ट के साथ दिखता है तो ज्यादा आकर्षित करता है

Unknown said...

संदीप जी..मै आपके पिता जी को नमन करता हूं..और चाहता हूं की हर बाप अपने बच्चे को यही सिखाये.... मुझे गर्व है की हमारे देश में अभी भी आत्मीयता वाले लोग है...पूर्ण रूप से हमारी आत्म विखंडित नहीं हुई है अभी..

Ravi Rajbhar said...

Kash yah gyan sabke pass hota .

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