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Monday, February 28, 2011

धर्म और इश्वर के नाम पर क्यों हम एक दुसरे से लड़ते रहते हैं



हम सब कभी न कभी किसी न किसी बात को ले कर उस धर्म को और धर्म की आड में उस धर्म में माने जाने वाले आराध्य को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश में लगे रहते हैं जिसे हम मानते हैं और ऐसा करने वालो में कई बुद्धिजीवी लोग भी होते हैं जो कहते हैं इश्वर सिर्फ एक ही है.

ऐसा क्यों है मै आज तक समझ नहीं पाया हूँ और ना ही इस सवाल का जवाब मुझे उस व्यक्ति से मिल पाया है जो मेरे अनुसार विश्व के सबसे ज्ञानी दार्शनिकों में से एक थे वो थे मेरे दादा जी.

मैंने दादा जी से जब सवाल किया था "क्यूँ हम हमारे मेहतर को छूने से गुरेज करते हैं जबकि राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे" तो मुझे उस सवाल का संतोषजनक जवाब मिला था, लेकिन जब मैंने सवाल किया था "क्यों हम सब उस धर्म एवं इश्वर को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश करते रहते हैं जिसे हम मानते हैं तो जवाब मिला था "बेटा इस सवाल का जवाब मै पिछले ८० सालो से ढूँढने की कोशिश कर रहा हूँ लेकिन अभी तक नहीं मिला है और अंत समय तक ढूंढ पाऊँगा ये भी उम्मीद नहीं है, तो मै इस का जवाब तुम्हे कहा से दूं."

आगे उन्होंने कहा था " मै इस बात का जवाब शायद इस लिए नहीं ढूंढ पा रहा हूँ क्योंकि शायद मै भी पक्षपाती हूँ और उस धर्म का पक्ष लेता रहा हूँ जिस धर्म में मैंने जन्म लिया है और शायद यही इस सवाल का जवाब भी है, तो तुम ये कोशिश करना की कभी भी मानवता के अतरिक्त किसी और धर्म को धर्म मानना ही नहीं तो शायद तुम इस जवाब को ढूंढ लोगे"

मै मेरे दादा जी के चरणों की धुल भी नहीं हूँ तो मै ये तो कभी नहीं कहूँगा की मैंने इस सवाल का कोई जवाब ढूंढ लिया है लेकिन जो बात मेरे दादा जी नहीं कही थी मै उसी को सच मानूंगा और उनकी कही बात को आगे बढ़ाते हुए कहूँगा की मै ये मानता हूँ की इर्ष्या वश हम सभी अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करने में लगे रहते हैं, और यही कारण होता है दुसरे के धर्म और इश्वर को भी छोटा साबित करने की कोशिश करने के लिए

आप खुद ही देखिये यदि बात होती है देश की तो हम हमारे देश को पश्चिमी मुल्को से श्रेष्ठ साबित करने के लिए हमारी महान संस्कृति की दुहाई देते हैं, इसी तरह से जब बात होती है प्रदेश की तो हम उस प्रदेश को महान साबित करने की कोशिश में लग जाते हैं जिससे हम कोई सम्बन्ध रखते हैं देश या प्रदेश तो मात्र एक उदाहरण है यह बात हर उस विषय में लागू होती है जिसमे किसी न किसी तरह से हम एक दल या भीड़ के रूप में शामिल होते हैं और धर्म भी इसी तरह की भीड़ का एक हिस्सा है, और यदि हम हमारे धर्म को श्रेष्ठ साबित कर देते हैं तो स्वत: ही एक बहुत बड़ी आबादी से खुद को श्रेष्ठ साबित कर लेते हैं जो की हमारे दंभ को एक विजयी अह्सास दिला कर सुख प्रदान करता है

मै ये भी नहीं कहूँगा की हम ऐसा सब सोच समझ कर या जानबूझ कर के करते है, हम ये सब इस लिए करते है क्योंकि हम मानव स्वभाग की इन कमियों से अनभिग्य होते है और अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने की प्रव्त्ती के कारण धर्म के नाम पर लड़ते रहते है और जो कमी इस में बच जाती है उसे हमारे देश के कुछ नेता, मौलवी, साधू और पादरी पूरी कर देते हैं.

कुछ साधू, मौलवी, पादरी, पंडित और धर्मांध लोग मुझ पर नास्तिक होने का आरोप लगा सकते हैं मुझे काफ़िर कह सकते हैं, कुछ के अनुसार मै पापी भी कहलाऊँगा लेकिन मै ऐसे सभी व्यक्तियों को कहूँगा की नास्तिक तो वो लोग है जिन्हें इश्वर की आराधना, अल्लाह की इबादत और जीजस के सामने की जाने वाली प्रार्थना में अंतर दिखता है. मेरा मानना है की हर व्यक्ति की प्रार्थना करना उस व्यक्ति के क्षेत्र विशेष के अनुसार होता है ठीक उसी तरह जिस तरह किसी क्षेत्र विशेष की भाषा बोली और खाने का तरीका होता है. समय बीतने के साथ लोग एक क्षेत्र से दुसरे क्षेत्र में जाने लगे और अपने साथ न केवल खाना, पहनावा और बोली ले गए बल्कि इश्वर की प्रार्थना करने का तरीका भी ले गए तो इस बात पर इंसान को इंसान से बांटना और लड़ना कोई समझदारी की बात तो नहीं है .

कुछ लोग अभी भी खुद को श्रेष्ठ ही मानना चाहते है और इसके लिए वो अपने ही धर्म को श्रेष्ठ घोषित करेंगे तो मै हर धर्म के ठेकदार ( तल्ख़ शब्दों के लिए माफ़ी चाहूँगा लेकिन मै इससे अच्छा शब्द ढूंढ नहीं पाया था) से एक ही सवाल का जवाब चाहता हूँ की जिस सत्ता की प्रार्थना, पूजा या इबादत करने के लिए आप कह रहे हैं उस सत्ता को किसने बनाया, और यदि आपके पास कोई जवाब है तो मेरा यही सवाल है की उन्हें किसने बनाया और ये सवाल तब तक आता रहेगा जब तक हर धर्म का ठेकेदार ये नहीं कह देता की नहीं मालूम और मै दावे के साथ कह सकता हूँ की कुछ देर बाद हर धर्म के ठेकेदार के पास से इस सवाल का यही जवाब आएगा नहीं मालूम. मेरे इस विचार से तार्किक रूप से तो मैंने ये सिद्ध कर दिया है की वो परम सत्ता एक ही है तो फिर कैसे किसी धर्म या आराध्य को छोटा या बड़ा साबित किया जा सकता है


इस लेख का समापन करने के पहले बचपन में लिखी एक कविता की कुछ पंक्तिया लिखना चाहूँगा

पैगम्बर के पहले मुस्लिम नहीं था कोई,
जीजस के पहले कोई ईसाई नहीं था.

सिख और बौद्ध नहीं था कोई
नानक और बुद्ध के पहले

हिंदू कोई राम और कृष्ण के बाद भी नहीं था

तो फिर क्यूँ हम मजहब के नाम पर एक दुसरे का खून बहते हैं
पशु से इंसा बन गए क्यों फिर पशुता अभी भी दिखाते हैं


अंत करते हुए सिर्फ इतना ही कहूँगा की अगर मेरे लिखने से एक व्यक्ति भी अपने आप को बदल सका तो मेरा लिखना सफल हो जायेगा

धन्यवाद

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