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Saturday, February 19, 2011

भारत में देशप्रेम एकता और क्रिकेट



कई दिनों से इस विषय पर कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था पर मौका नहीं मिल पा रहा था और समस्या ये भी थी की मै कोई अच्छी प्रस्तावना भी नहीं बना पा रहा था लेकिन आज पिता जी ने एक मौका दे ही दिया

आज पिता जी घर पहुंचे तो उनका मुझ से पहला सवाल था "क्या आज से क्रिकेट शुरू हो गए हैं" मेरे भांजे ने जवाब दिया हां हो चुके हैं

पिता जी से मेरा सवाल था आप तो क्रिकेट देखते नहीं हो आपको इसका ज्यादा शौक भीं नहीं है फिर आप क्यों पूँछ रहे थे और आपको कैसे पता चला की आज से क्रिकेट शुरू हो गए हैं

पिता जी ने जवाब दिया क्योंकि आज सारे रास्ते लोग भीड़ लगा कर पान और चाय की दुकानों पर खड़े दिखे थे, रास्ते में मुझे कई लड़ाईयां देखने को भी मिल जाती थी लेकिन आज सिर्फ लोगो में एक बात पर प्यार भरी बहस देखने को मिली कोई लड़ाई नहीं, बड़ा अच्छा लगा और ऐसा मै सिर्फ तभी देखता हूँ जब क्रिकेट का खेल पूरे जोश से शुरू हो चूका हो.

क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसमे गजब का रोमांच है खिलाडियों के लिए बहुत सारा पैसा भी पर इस सब से बढ़ कर जो बात व्यक्तिगत रूप से मुझे पसंद है वो है भारत में क्रिकेट का सिर्फ एक खेल न हो कर धर्म होना. मै पहला व्यक्ति नहीं हूँ जो ये कहरहा है की भारत में क्रिकेट एक धर्म है और ना ही मै आखरी व्यक्ति होने वाला हूँ. ये ऐसा धर्म है जिसका न कोई धर्म गुरु है न ही कोई पवित्र किताब लेकिन इस धर्म को मानने वाले पूरे भारत वर्ष में हैं और सभी की श्रद्धा और भक्ति क्रिकेट नाम के इस धर्म के लिए समान है.

क्रिकेट धर्म के अनुयायियो को ढूँढने के लिए आपको किसी तरह की तकलीफ उठाने की आवश्यकता भी नहीं है भारत में क्रिकेट के धर्म को मानने वाले जितने अनुयायी है वो हर महत्वपूर्ण क्रिकेट मुकाबले के दिन किसी पान के दुकान या फिर चाय के ठीओ पर मुह मरते मिल जायेंगे, जो बेचारे ऐसी जगह पर नहीं जा सकते वो रेडियो से कान चिपका कर रखते हैं और फिर भी कुछ बेचारे बच जाते हैं तो वो लोग इधर उधर से स्कोर क्या हुआ पूँछ पूँछ कर अपनी जिग्यासा शांत करते रहते हैं.

इस धर्म की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की इसमें कोई जाती नहीं होती, कोई सम्प्रदाय नहीं होता, कोई क्षेत्रवाद नहीं होता, कोई भाषावाद नहीं होता इस धर्म में कोई बड़ा नहीं होता और कोई छोटा नहीं होता सभी सिर्फ क्रिकेट प्रेमी होते हैं. इस धर्म के लोगो को एक दुसरे से संवाद के लिए भाषा की आवश्यकता भी नहीं है इनका काम सिर्फ स्कोर, विकेट, रन, शतक जैसे मामूली शब्दों से ही चल जाता है और चूंकि भाषा महत्वपूर्ण होती नहीं है तो भाषा के नाम पर भी अलगाव का कोई कारण नहीं बनता.

आज जब भी भारत की क्रिकेट टीम पाकिस्तान के साथ कोई महत्वपूर्ण मुकाबला जीत लेती है तो ऐसा लगता है जैसे दिवाली, ईद, ओणम और बैशाखी एक साथ आ गया है, मुकाबला जीतने के बाद हर शहर के क्रिकेट धर्मानुयायी हजारों की तादाद में उस शहर के महत्वपूर्ण चोको पर एकत्रित होना शुरू हो जायेंगे और एक दुसरे के साथ गले मिल कर बधाईयाँ देते हुए जश्न मनाएंगे और ये लोग एक दुसरे से पूंछेंगे भी नहीं की आपका धर्म क्या है, जात क्या है, तबका क्या है या भाषा क्या है क्यूंकि उस समय सभी का एक ही धर्म होता है, सबकी भाषा एक होती है, सबका तबका और जात भी एक ही होती है.

कभी कभी सोचता हूँ की क्यों हमारे देश में क्रिकेट को ही असली धर्म घोषित नहीं कर दिया जाता इससे कम से कम हम आपस में एक दुसरे से जाति, धर्म, भाषा, और संप्रदाय जैसी फालतू वजहों से लड़ना झगडना तो बंद कर देंगे.

मैंने पढ़ा था की अकबर ने सामाजिक एकता के लिये एक नया धर्म शुरू किया था जिसमे सभी लोग एक सामान थे, न कोई बड़ा था न कोई छोटा और उसने उस धर्म का नाम रखा था " दीन ए इलाही " हालाकि ये मजहब तब कुछ ज्यादा चला नहीं था लेकिन अगर अकबर आज के ज़माने में होता और वो ऐसा धर्म को शुरू करना चाहता तो धर्म का नाम होता " दीन ए क्रिकेट" और मै दावे के साथ कह सकता हूँ की वो धर्म बहुत प्रचलित होता और भारत की एकता और अखंडता मै एक अहम पड़ाव बन जाता

इस विषय पर लिखने को तो एक पूरी किताब भी लिखी जा सकती है लेकिन इस लेख का अंत करते हुए मै मात्र इतना लिखना चाहूँगा की अगर क्रिकेट आप का भी धर्म है तो उसे आपका मूल धर्म बना ले और देश की विकास में अपना कीमती योगदान दें.

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