आज भी अखबार देख कर निराशा ही हुई ...
हिंदी दैनिक भास्कर के मुख्य पन्ने पर मात्र सहवाग की चर्चे थे... तेस्सरे पन्ने पर जिसे की मुख्य बताने की को कोशिश की गई थी उसमे भी लगभग ८०% हिस्सा विज्ञापन और सहवाग की गाथा से भरा हुआ था बचे हुए हिस्से में चार ख़बरों को रखा गया है जिनके लिए शायद पूरा पन्ना दिया जाना चाहिए था ...
प्रधानमंत्री को दायरे में लाने पर मतभेद लगभग १०० शब्दों में खबर बाकी किसी बाद वाले पेज पर (४-५ शब्द की एक लाइन.. ऐसी २० लाइन ..इस खबर को विज्ञापनों के बीच में ढूंसा गया है )
चिदम्बरम के खिलाफ १७ को गवाही देंगे स्वामी लगभग ९० शब्दों में खबर बाकी किसी बाद वाले पेज पर (औसतन ७ शब्द एक लाइन में ऐसी १२ लाइन बीच में एक छोटा फोटो भी. खबर उपरी कोने में बाएँ तरफ )
एफडीआई पर अड़ते तो चली जाती सरकार (प्रणब मुखर्जी का बयान. चिदम्बरम के खिलाफ गवाही वाली खबर के नीचे लगभग उसी तरह की )
कृष्णा के खिलाफ एफ आई आर लगभग ५० शब्दों में पूरी खबर ही खत्म
जब देश ऐसे माहौल में है जिसमे अखबारों को सच को डंका पीट कर लिखने की जरूरत है तब भी अगर अखबार इस तरह से लिखेंगे तो क्या वो देश के लिए अच्छा है
मुझे सहवाग के शतक़ के महिमामंडन से कोई शिकायत नहीं है लेकिन अखबारों की उदासीनता से शिकायत जरूर है
आप अपनी राय दें.
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