ट्रेन के वातानुकूलित तीसरे दर्जे में रात का सफ़र अभी अभी ख़त्म हुआ ही था की रेल सेवा का कर्मचारी कम्बल एकत्रित करने लगा
मेरे ही कम्पार्टमेंट में आ कर वो कर्मचारी कंबलो की गिनती करने लगा और गिनती पूरी होने पर अपना सर पकड़ कर बैठ गया.
एक व्यक्ति ने पूंछा क्या हुआ भाई तो जवाब मिला आज फिर ३ कम्बल कम है कोई फिर से कम्बल ले कर चला गया
दुसरे व्यक्ति ने आदर्शवादिता दिखाते हुए कहा बड़ा ख़राब जमाना आ गया है, लोग ३०० रुपये के कम्बल के लिए भी अपना इमान ख़राब कर लेते हैं,
मैंने कहा अपनी अपनी ईमानदारी, चूंकि मै अपना कम्बल ले कर गया था तो फिर से कम्बल ओढ़ कर सो गया.
थोड़ी देर बार उठा तो देखा ये व्यक्ति आगे ही एक छोटे स्टेशन पर सारा सामान ले कर उतरने की तय्यारी कर रहे हैं जबकि इन्हें अभी आगे और जाना था, हमने पूंछा तो बोले यहाँ एक दोस्त रहता है उससे मिल कर दो घंटे बाद वाली गाड़ी से चला जाऊँगा
थोड़ी देर बाद में हमारे एक सहयात्री लघुशंका से निपट कर वापस आये तो उन सज्जन के बारे में पूंछने लगे, जब हमने बताया की वो तो पिछले स्टेशन पर ही उतर गए तो अब ये सज्जन सर पकड़ कर बैठ गए
पूंछने पर पता चला की लघुशंका पर जाने के पहले वो अपने सामान की हिफाजत की जिम्मेदारी उन आदर्शवादी महोदय को दे कर गए थे और वो ही सामान ले कर चम्पत हो गए
मेरे मुह से फिर एक बार निकला "अपनी अपनी ईमानदारी"
0 comments:
Post a Comment