मै फिर से लिखना शुरू करना चाहता था लेकिन कहा से लिखू और क्या लिखू कुछ समझ ही नहीं आ रहा था अभी जब जबरन सोने की कोशिश की तो दिमाग में फिल्म का एक द्रश्य घूमड़ने लगा और मुझे लगा की मै फिर से लिखने की शुरुवात शायद यही से कर सकता हूँ.
मुझे सभी शब्द अक्षरश तो याद नहीं है लेकिन द्रश्य कुछ यूं था की एक डॉ अपने मरीज को कहता है "रॉय ये मत देखो की जिंदगी में कितना वक्त बचा है पर ये देखो की तुम अपने बचे हुए वक्त में कितनी जिंदगी जी सकते हो, तुम चाहो तो एक पल में पूरी जिंदगी जी सकते हो और हो सकता है की पूरी उम्र में भी कभी जी न सको."
मुझे लगता है की हम सब आज अपनी भाग दौड़ भरी जिंदगी में कभी जीते नहीं है पर बड़ी बड़ी खुशियों के लिए मरते रहते हैं और उन बड़ी खुशियों की आस में सामने आने वाली छोटी छोटी ढेरो खुशियों पर ध्यान न देकर हमेशा दुखी रहते हैं. मै मेरा व्यक्तिगत अनुभव यदि कहूं तो मेरे अनुसार किसी भी बड़ी ख़ुशी से मिलने वाला आनंद भी कभी स्थायी नहीं रहता है फिर जाने क्यों हम सिर्फ बड़ी खुशियों के पीछे भागते हैं और छोटी ख़ुशी या छोटे आन्नद को उपेक्छीत कर देते हैं जबकि छोटी खुशिया और आनंद हमेशा मिलते रहते हैं और बड़ी खुशिया गाहे बगाहे ही दरवाजा खटखटाती हैं.
इसी सन्दर्भ में एक और फिल्म का एक द्रश्य याद आ रहा है जिसका मै यहाँ उल्लेख करना चाहूँगा.
यह द्रश्य कुछ ऐसा है की घर का बुजुर्ग मुखिया मासिक वेतन मिलने पर अपने सारे रुपये मेज पर रख देता है और पत्नी से कहता है की अपनी पसंद का एक नोट उठा ले और जवाब में पत्नी एक सबसे छोटा नोट उठा कर रख लेती है
ये देख कर जवान बेटा कहता है की "माँ तू बहोत भोली है बाबूजी पिछले ३० सालो से हर महीने तेरे सामने इसी तरह से रुपये रख देते हैं और तू हर बार सबसे छोटा नोट उठा लेती है, तू कब समझेगी की रुपये की कीमत उसके रंग से नहीं उस लिखे नंबर से होती है"
इस बात को सुन कर माँ ने जवाब दिया "आज से तीस साल पहले जब पहली बार मुझे नोट चुनने के लिए कहा गया था और तब मै बड़ा नोट उठा लेती तो ये किस्सा उसी दिन ख़त्म हो जाता और फिर मुझे हर महीने ये छोटा नोट कैसे मिलता, तो बताओ एक बार के बड़े नोट के लालच के लिए मै हर महीने मिलने वाले छोटे नोट को क्यों छोड़ दूं। "
हमारी जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है जिसमे हमें हर मोड़ पर छोटी खुशिया मिलती रहती है लेकिन हम बढ़ी खुशियों की लालच में इन छोटी खुशियों को छोड़ देते हैं और कभी बढ़ी खुशियों से भी आनंद नहीं उठा पाते।
कुछ लोगो के पास ये बहाना भी होता है की हमें तो कभी ऐसी छोटी ख़ुशी नहीं मिली तो मेरा जवाब है की जनाब आप आस पास देखिये तो सही आपको चारो तरफ आप चारो तरफ खुशियों और आनंद से घिरे हुए हैं बस आपको आपने आँख और कान खोलने की जरूरत है ये ख़ुशी आपको आपके बच्चे की किलकारी में भी मिल सकती है और पत्नी की मुस्कान में भी।
ये आनंद आप अपने पिता के आशीर्वाद में भी पा सकते हैं और मित्रो के साथ बैठ कर एक प्याली चाय पीने में भी, आवश्यकता है तो सिर्फ इस आनंद और ख़ुशी को अनुभव करने की। आप एक बार जब इस और ध्यान देंगे तो खुद पाएंगे की जीवन में इन छोटी छोटी खुशियों का कितना महत्व है और इनसे कितना आनंद प्राप्त होता है
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