आज सुबह जब उठा तो सबसे पहले बाबा और अनुयायियों को खदेड़ने की खबर पढ़ी, और मुह से निकला जलियांवाला कांड करना चाहती है क्या सरकार! सुबह से बड़ा ही व्यथित हूँ और द्रवित भी...
जब दर्द हद से बढ़ गया, आँखों ने आंसुओ को और सहेजने से इनकार कर दिया, भड़ास को दिल ने अपने अंदर रखने असमर्थता दिखा दी और जब सवाल जवाब की व्याकुलता मे तडपने लगे तब उँगलियों ने बहते हुए नमक से शक्ति ले कर दिल की भड़ास को कागज पर उतारने की कोशिश की,
उसके बाद बाबा दोषी बता रहे थे सरकार को, सरकार और कांग्रेसी दोषी बता रहे थे बाबा को. और इस बीच पिस रहा था आम आदमी. बाबा का कहना है की कोई समझौता नहीं हुआ .... सरकार उन्हें मारना चाहती थी और उन्होंने आत्मसमर्पण करा फिर भी उन लोगो ने हमला करा.
और कपिल सिब्बल. दिग्विजयसिंह राज बब्बर जैसे लोग बाबा को लगभग गालियाँ दे रहे हैं....इन लोगो मे एक ऐसा शख्स भी है जो भारतीय संस्कृति की बात कर के आतंकवादी को जी कह कर संबोधित करता है पर एक ऐसे इंसान को जो देश हित की बात कर रहा है उसे गाली दे रहे हैं ...उस देश की संस्कृति के पक्षधर को शर्म नहीं आई गालियां देने मे,उनका कहना है की इजाजत नहीं थी अनशन करने की... तो फिर बाबा को अनशन करने ही क्यों दिया सीधे एअरपोर्ट से ही वापस भेज दिया होता... और अगर इस तरह की हरकत करना ही थी तो रात को एक बजे क्यों
ये सब सरकार की सोची समझी चाल थी ये तो तय था वर्ना रात को एक ही जगह ५००० से ज्यादा पुलिस जवान कैसे आते अगले दिन की तय्यारियां कैसे रहती.
इस घटना का राजनैतिक दल अपनी रोटियाँ सेंक रहे हैं और ठगा आम इंसान जा रहा है
बाबा की मांगे तो ठीक ही थी पर उनकी नियत ठीक थी या नहीं वो मै नहीं जानता... लेकिन ये तय है की सरकार की नियत ठीक नहीं है इस पूरे मामले मे
वैसे भी जिस सरकार मे इतने भ्रष्टाचारी मंत्री हों, उस सरकार से और क्या उम्मीद की जा सकती है काले धन को उजागर करने के मामले मे
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