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Wednesday, June 22, 2011

लोकपाल और प्रधानमंत्री


भारत सरकार के अनुसार प्रधानमंत्री पद कभी भी लोकपाल के दायरे में नहीं आएगा, यदि हम भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री जी की बात करे तो वो बिलकुल भी भ्रस्टाचारी नहीं है अलबत्ता भ्रष्टाचारियों के पोषक जरूर है और मेरा मानना है की ये वर्तमान कांग्रेस सरकार की सोची समझी चाल है जिसका फायदा आज तो नहीं पर आज से १ साल बाद जब श्री राहुल गांधी जी प्रधानमंत्री पद ग्रहण करेंगे तब उन्हें सीधे तौर पर मिलेगा क्यूँ की अगर आज मै ये कह रहा हूँ की वर्तमान प्रधानमंत्री भ्रष्टाचारी नहीं है तो यही बात राहुल गांधी जी के लिए मै नहीं कह पाऊंगा.

इसी घोषणा के साथ एक बात ये भी तय हो गई है की प्रधानमंत्री जी के पास इस बात का अधिकार बना ही रहेगा की वो किसी को भी निर्दोष साबित कर सके या फिर अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए उस जांच का पूरा रुख मोड सके.

यहाँ बात करे श्री दिग्विजय सिह जी के बारे में की उनका जो चीखना चिल्लाना था की सर्वदलीय बैठक में सर्वदलीय सहमती के हिसाब से ये तय किया जा सकता है की प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखा जाना चाहिए या नहीं तो, वो एक ऐसे मंझे हुए नेता है जो अच्छी तरह से जानते हैं की ये मुमकिन ही नहीं है की किसी भी दल का नेता प्रधानमंत्री पद को लोकपाल में शामिल करना चाहेगा, क्यूँ की हर दल का नेता प्रधानमंत्री बनने के सपने पाल कर बैठा होता है, चाहे वो नेता किसी भी टटपुंजिया क्षेत्रीय दल का नेता क्यूँ ना हो तो सर्वदलीय बैठक में ये होना तो सम्भव था ही नहीं.

मैंने २ महीने पहले पहले एक व्यंग्य कविता में लिखा था
नेता जी बोले क्या जनता के प्रतिनिधि
जनता के भोलेपन से अलग होंगे

जब हमने  ६४ साल
भोली जनता को मूर्ख बनाया
तो भला अब क्यों हम रियायत दिखायेंगे

फिर वो बोले इस बिल को
हम खरगोश के बिल की तरह बनायेंगे
जीसके कारण कभी भी हम भ्रष्टाचारी
इमानदारी के साँप की पकड में नहीं आएंगे

वही बात यहाँ सही साबित हुई है 

यही महानुभाव ये भी कहते हुए पाए गए हैं की अन्ना जनता का प्रतिनिधित्व कैसे कर सकते हैं जब की वो चुने हुए नेता नहीं है, लेकिन जाने क्यों ये व्यक्ति भूल जाते हैं की जिसे देश के करोडो युवाओ ने भूखा रह कर सहयोग किया और जिनके कारण सरकार की हवा मात्र ४ दिन में ही पूरी तरह से शंट हो गई थी तो वो जनता के साथ के कारण ही हुआ था और इस लिए अन्ना जनता के चुने नेता है.

स्वयम्भू नेता तो वो है जो पीढ़ियों से गाँधी और नेहरु के नाम का उपयोग करते हुए देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन हो जाते है, तथा वो भी जनता के नेता नहीं है जो की जी हुजूर कर के पिछले कई सालो से देश के सर्वोच्च पद पर आसीन है.पर बस अब और नहीं, अब और नहीं चलेगी ये परिवार वाद की आंधी

मैंने मेरी कविता में ये भी लिखा था की
आप आपका मुगालता पालिए
हम हमारा मुगालता पालेंगे
जो हम सफल हुए तो
भ्रष्टाचारीयों पर कई सोंटे बरसाएंगे

और जो आप हुए सफल तो
हम हार नहीं मांनंगे और उसी सोंटे पर
इंकलाबी झंडा लगा कर
फिर से दिल्ली कूंच कर जायेंगे

और फिर भूख हड़ताल करेंगे
और फिर सरकार को हमारे सामने झुकायेंगे
लेकिन ये तय है
की अब जो आगे बढ़ चुके हैं कदम
तो उन्हें पीछे नहीं हटाएंगे,
या तो जियेंगे शान से
या इन्कलाब के इस तूफ़ान में
अपनी ताकत देते हुए मिट जायेंगे
पर अब हम एक अच्छा भारत बनायेंगे

और अब इस अच्छे भारत के लिए हम सब अपने तन मन को समर्पित कर देंगे लेकिन देश को इस गड्ढे से निकल कर लायेंगे..

मै १७ अगस्त को अन्ना का साथ दूंगा...उम्मीद है आप भी साथ ही होंगे

Sunday, June 5, 2011

दोषी बाबा हों या सरकार, ठगा तो आम आदमी गया

आज सुबह जब उठा तो सबसे पहले बाबा और अनुयायियों को खदेड़ने की खबर पढ़ी, और मुह से निकला जलियांवाला कांड करना चाहती है क्या सरकार! सुबह से बड़ा ही व्यथित हूँ और द्रवित भी...

जब दर्द हद से बढ़ गया, आँखों ने आंसुओ को और सहेजने से इनकार कर दिया, भड़ास को दिल ने अपने अंदर रखने असमर्थता दिखा दी और जब सवाल जवाब की व्याकुलता मे तडपने लगे तब उँगलियों ने बहते हुए नमक से शक्ति ले कर दिल की भड़ास को कागज पर उतारने की कोशिश की,

उसके बाद बाबा दोषी बता रहे थे सरकार को, सरकार और कांग्रेसी दोषी बता रहे थे बाबा को. और इस बीच पिस रहा था आम आदमी. बाबा का कहना है की कोई समझौता नहीं हुआ .... सरकार उन्हें मारना चाहती थी और उन्होंने आत्मसमर्पण करा फिर भी उन लोगो ने हमला करा.

और कपिल सिब्बल. दिग्विजयसिंह राज बब्बर जैसे लोग बाबा को लगभग गालियाँ दे रहे हैं....इन लोगो मे एक ऐसा शख्स भी है जो भारतीय संस्कृति की बात कर के आतंकवादी को जी कह कर संबोधित करता है पर एक ऐसे इंसान को जो देश हित की बात कर रहा है उसे गाली दे रहे हैं ...उस देश की संस्कृति के पक्षधर को शर्म नहीं आई गालियां देने मे,उनका कहना है की इजाजत नहीं थी अनशन करने की... तो फिर बाबा को अनशन करने ही क्यों दिया सीधे एअरपोर्ट से ही वापस भेज दिया होता... और अगर इस तरह की हरकत करना ही थी तो रात को एक बजे क्यों

ये सब सरकार की सोची समझी चाल थी ये तो तय था वर्ना रात को एक ही जगह ५००० से ज्यादा पुलिस जवान कैसे आते अगले दिन की तय्यारियां कैसे रहती.

इस घटना का राजनैतिक दल अपनी रोटियाँ सेंक रहे हैं और ठगा आम इंसान जा रहा है

बाबा की मांगे तो ठीक ही थी पर उनकी नियत ठीक थी या नहीं वो मै नहीं जानता... लेकिन ये तय है की सरकार की नियत ठीक नहीं है इस पूरे मामले मे

वैसे भी जिस सरकार मे इतने भ्रष्टाचारी मंत्री हों, उस सरकार से और क्या उम्मीद की जा सकती है काले धन को उजागर करने के मामले मे
 
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